![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiuKmC6DHK086vc8ibqZjYrAWbJaOMlNmxtSa4_zAOKTQOkqOEOewbk4IESKK0Q4WNzg86Xx1_0gp5inAKojejTOysym7MO-vbqMWEpo9osVaHEvG1wVxnGe9D06qUFSYNgJbVZbnM6mxMN/s400/rajni.jpg)
मुझे अपनी उस सहपाठी से एकतरफा आकषर्ण था तब मैं 11 वीं कक्षा का विधार्थि था तथा गर्मियों की छुटिट्यां हो जाने से वो एकतरफा आकषर्ण ज्यादा जोर मारने लगा तब शायद ये कविता मैने लिखि होगी क्यों कि इस पर 05.05.1991 की दिनांक अकिंत है।
यहां मैं फिर उल्लेख कर दुं कि प्यार व्यार कुछ नहीं था शायद विपरित लिंग के प्रति मेरा एकतरफा आकर्षण था क्यों कि मैं अपनी भावनांए कभी भी व्यक्त नहीं कर पाता था तथा डर भी लगता था। आज वो कागज 20 वर्ष बाद वापस सामने आया तो सोचा मेरे ब्लोग पर डाल दुं क्या पता दुनिया के किसी कोने से वो सहपाठी इसे पढ ले तथा उस वक्त की मेरी भावना ( या बदनियति ) से आज अवगत हो जावे।
ये रही वो चंद लाईनेः-
पवित्र पावन सूरत जब देखी तुम्हारी
फिकी पड़ गयी क्षण भर में दुनिया सारी
कहते है मित्र छलावा है यह
जवानी के जाल का भुलावा है यह
पर तुम्हारी काली आखें कजरारी
होंठ जैसे गुलाब की क्यारी
इनको कैसे भुल सकता है कोई
तुम्हारे बिना कैसे जी सकता है कोई
रजनी अमर रहेगी यादें तुम्हारी
फिकी पड़ गयी क्षण भर में दुनिया सारी
आज मैं शादिशुदा हुं तथा 3 बच्चों का पिता हुं परन्तु अभी भी उतना ही डरता हुं इसलिये यह वैधानिक चेतावनी लिख देता हुं कि इस आलेख के सभी तथ्य काल्पनिक है तथा इनका वास्तविक घटनाओं से कोई संबंध नहीं है इसलिये वास्तविक घटनाओं से किसी भी मिलान को संयोग मात्र समझा जावे।