सर्वप्रथम अपने पाठकों से इस लेख को लिखने में हुये विलम्ब के लिये क्षमा चाहता हुं क्यों कि आज से चैत्र नवरात्रा प्रारंभ हो चुके हैं तथा सभंव है जब तक मेरे कुछ पाठक इस ब्लोग को पढ पावें तब तक दुसरा या तीसरा नवरात्रा आ जावे खैर उनके लिये भी मैं उपाय बताउंगा जो इस साधना को प्रथम नवरात्रा से नहीं कर सकेगें।
श्री देव्यथर्वशीर्ष को अथर्ववेद से लिया गया है अथर्ववेद में इसकी बड़ी भारी महिमा बतायी
गयी है इसके जाप से देवी की कृपा इतनी शीघ्र प्राप्त होती है कि साधक आश्चर्यचकित हो उठता है।
गयी है इसके जाप से देवी की कृपा इतनी शीघ्र प्राप्त होती है कि साधक आश्चर्यचकित हो उठता है।
इस देव्यथर्वशीर्ष के जाप से पांचों अथर्वशीर्ष के जाप का फल मिलता है असल में वेदों में हिन्दुओं के पांच प्रमुख देवता माने गये हैं गणेश , दुर्गा , शिव , सुर्य व विष्णु अतः इन पांचों देवताओं के अलग अलग अथर्वशीर्ष बताये गये हैं परन्तु देवी के अथर्वशीर्ष के जाप से इन पांचों का फल प्राप्त होता है।
इसका सांयकाल में अध्ययन करने से दिन भर किये हुये पापों से मनुष्य मुक्त हो जाता है तथा दिन में अध्ययन करने से रात्रि में किये हुये पापों से मुक्त हो जाता है। असल में गीता में कहा गया है कि जैसे अग्नि में धुआं रहता है वैसे सभी कर्मों में पाप रहता है आप सड़क पर चलते हैं तो भी छोटे जीव जन्तु जाने अनजाने में आपसे दबकर मरते रहते हैं नौकरी करते हैं तो भी जाने अनजाने में दुसरों की निन्दा झूठ बोलना आदि कर्म परवश हो जाते हैं इनके कारण संचित हुआ पाप ही सभी दुखों का मूल है जिसके बीज चाहे इस जाप से नष्ट हो जाते हैं यहि इसका तात्पर्य है।
इसका दस बार जाप करने से मनुष्य इस जन्म के संचित कर्मों से मुक्त हो जाता है तथा 108 बार जाप करने से पिछले सभी जन्मों के संचित बीज जल जाते है।
बस इसका ही सरल सा अनुष्टान करना है मैं ज्यादा जटिलता से पूजा करना नहीं बताता बस माता की प्रतिमा के आगे देसी घी का दीपक लगाएं घूप लगाएं तथा इस लिन्क से गीताप्रेष गोरखपुर की मूल दुर्गासप्तशती डाउनलोड कर लेवें इसमें पेज सं 44 पर श्री देव्यथर्वशीर्ष दिया हैजिसका हिन्दी अर्थ पहले पढ़ कर समझ लेवें कि आप देवी की किस रूप में उपासना करने जा रहें है इसके पश्चात पाठ संस्कृत में ही करना है उच्चारण गलत करने से भी कोई दोष नहीं है क्यों कि आपको छ बार सुबह व छ बार शाम को कुल बारह पाठ प्रतिदिन के हिसाब से कुल 108 पाठ इन नवरात्रा में करने हैं जो लोग इस लेख को विलम्ब से पढ रहें हैं वे उस हिसाब से संख्या बढ़ा लेवें कि 9 दिन में 108 पाठ पुरे हो जावें।
इसलिये जब तक आपके 108 पाठ पुरे होगें तब तक माता की कृपा से आपका उच्चारण अपने आप शुद्व हो जावेगा आपका पहला पाठ अनाड़ी संस्कृत ज्ञानी की तरह होगा परन्तु 108 वां पाठ पंडित की तरह होगा प्रयास करके देखिए यह पहला चम्तकार है।
इस उपासना के दौरान जो स्वप्न या प्रत्यक्ष अनुभव हों वे किसी को नहीं बता सकते परन्तु पति पत्नी आपस में बता सकते हैं उसकी मनाही नहीं है। हमारे कमेंटस में इतना जरूर बता देवें कि आपने यह उपासना की तो आपको लाभ हुआ या व्यर्थ गयी।