ज्यादातर लोग अपना कर्म भगवान के लिये न करके नौकरी बचाये रखने के लिये, बॉस की खुशी के लिये, पैसे कमाने के लिये करते हैं आपको कर्म वही करना है बस नजरिया चेंज करना है कि आप कर्म कंपनी नौकरी बॉस या पैसे के लिये न करके भगवान के लिये कर रहें हैं।
इसे ही निष्काम कर्म कहते हैं अर्थात् आप अपने कर्म को पुरस्कार या लाभ की आशा से मत किजिये आप अपने कार्य को कुशलता से भगवान का कार्य मानकर भगवान को खुश करने के लिये किजिये बॉस की चापलुसी करना बंद करके भगवान को अपना बॉस मानिये बॉस से पदोन्नति पुरस्कार व सम्मानित होने की आशा का त्याग कर दीजिये क्यों कि आप उस सर्वशक्तिमान ईश्वर के लिये जब कार्य करेगें तो आपको नाशवान दुनिया के झूठे व काल्पनिक पुरस्कारों व सम्मान प्राप्ति के लिये अपना खुन जलाने की आवश्यकता नहीं है क्यों कि जब आप इन पुरस्कारों व सम्मान की आशा त्याग देगें तो भगवान की तरफ से मिलने वाले पुरस्कार आपको दंग कर देगें।
अतः आपको फल की इच्छा से सकाम कर्म नही करना चाहिए कोई भी कर्म मात्र ईश्वर की इच्छा मान कर ईश्वर के निमित करना चाहिए।
अपने सभी कर्मो को भगवान के लिये सम्पूर्ण कुशलता से पूरा करने वाला कर्मो के बंधन से मुक्त हो जाता है।
अतः कर्म योग में कर्मो के फलो को त्याग कर व्यक्ति जन्म मरण के बंधन से छुटकर अमृतमय परमपद (मोक्ष) को प्राप्त होता है।
अपने धर्म का पालन करते हुए और कर्तव्य कर्म का आचरण करते हुए यदि युद्ध जैसी विकट परिस्थिति भी उत्पन्न हो जावे तब सुख-दुःख, लाभ-हानि, विजय- पराजय का विचार किये बिना युद्ध भी किया जाना उचित है।
अर्थात् आप यदि अपना कर्म भगवान के लिये निस्वार्थ भाव से कर रहें है तथा आप पर कोई लांछन लगाता है या आप पर गलत आरोप लगाता है या आपको प्रताड़ित करने या आपका शोषण करने का प्रयास करता है तो उसे करारा जबाब देना भी आपका दायित्व है क्यों कि गीता आपको कायरता नहीं सिखाती है कायरता तो कामचोर व आलसी लोग दिखाते हैं आप अन्याय अत्याचार व शोषण के विरूद्ध निस्वार्थ भाव से आवाज उठाते हैं तो ईश्वर से प्राप्त सहायता के कारण आपको विजय भी मिलेगी।
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